दशहरा

 



चन्दन सुकुमार सेनगुप्ता

इस बार हम देवी पक्ष के एक ऐसी परिस्थिति को प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं जब कई देशों के लोग धर्म के नाम पर जंग के मैदान में उतर चुके और एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए | अक्टूबर २०२३ का दिन कुछ ऐसा ही संकेत लेकर आया जहाँ हिंसा, फरेब, धोखा आदि को आधार बनाकर जंगी सनक रखनेवाले कुछ लोग बेसहारा जनता जनार्दन पर टूट पड़े और उनमें से कईओं को उठाकर भी ले गए |

इस घटना के जबाबी पहल के अंतर्गत खाड़ी के कई देश के जवानों ने अपने अपने तोपों में गोला भरने लगे, आसमान से गोले बरसाने लगे और विनाश लीला में कूद पड़े | दो पक्षों में रहकर जंग करनेवालों की पहचान कुछ ऐसी बनी जहाँ एक पक्ष में सभ्यता और संस्कृति के संरक्षक थे तो दूसरे में आतंक पर विशवास रखनेवालों का सम्मलेन होने लगा | इसे रोक पाने का नेक इरादा लेकर सामने आनेवालों की संख्या बिल्कुन ना के बराबर रही; जाहिर सी बात है कि मौत का तांडव कई मुल्कों को चपेट में ले लिया |

सभी धर्मों और जनजाति के विचारकों का यही मत है कि हिंसा के रास्ते से कभी भी समाधान नहीं लाया जा सकेगा; दूसरे विश्व युद्ध के बाद राख में दबे आग को फिर से जंगी सनक रखनेवाले लोगों के जरिये सुलगाने का काम किया जाने लगा | उन सनकी जंगबाजों कि यह भी तमन्ना रही कि कुछ बड़े किरदार भी जंग कि भूमि में उतरें और अपना पक्ष रखते हुए इस घुरनवात को गति दें | पर बड़े किरदार इतनी आसानी से जंगभूमि में उतरकर रंगभूमि से दहाड़ रहे हैं | उन्हें तो किसी निर्णायक मोड़ पर चलकर जाना है और ही सुलह शान्ति के लिए काम करना है | सभी प्रगति से एक ही तत्व कीओर इशारा हो रहा है : क्यों बहती गंगा में हाथ धो लिया जाय और अपनी अपनी अर्थ व्यवस्था को संवार लिया जाय | जंगी सनक रखनेवाले मुल्कों के लिए यह एक सुनहरा मौका है जब उन्हें अपने हथियारों को जंगभूमि में उतारते हुए और कारगर होते हुए देखने का मौका मिलेगा; हथियार का बाजार भी गर्म रहेगा | अगर सभी देश और सभी जनजाति के लोग अमन और चैन से रहने लगे तब तो हथियार के सभी कारखानों  को बंद कर देना होगा ! कोई भी जंगी सनक रखनेवाले मुल्क के लिए ऐसा कर पाना  काफी कठिन ही होगा; वो ऐसा करना भी नहीं चाहेंगे | एक और कारण यह है कि कुछ समृद्ध देश दुनिया के साधन सम्पदा पर अपना प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण भी रखना चाहेंगे; जाहिर सी बात है कि उन्हें अन्य किसी शक्तिधर देश को पनपते हुए नहीं देखना है | इस कारण से भी बड़े खिलाड़ी कभी यह भी नहीं चाहेंगे कि उनके बिना किसी भी खेल को निर्णायक दिशा मिले |

विषय इतना भी कठिन नहीं है कि कोई समझ ही पाए और अपनी भूमिका ही बना पाए | जंग के समय किसी भी विषय को जिस प्रकार से पेश किया जाता है और जिस प्रकार से लोग अपनी भूमिकाएं बांधने लग जाते हैं उसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि हवा किस दिशा में जा रही है : सुर या असुर में से किसी एक पक्ष कि ओर ही इसे जाते हुए देखा जा सकेगा | इसकी गति और पक्ष के प्राबल्य से ही तय किया जा सकेगा कि किसके लिए विजय गाथा लिखी जा सकेगी!

भ्रम कि स्थिति

जिसे हम विजय का ताज पहनते हुए देखना चाहेंगे उसके गुण - दोष को लेकर शायद ही चर्चा करना चाहेंगे | यह इंसान के समाजबद्ध होने का ही नतीजा है कि व्यक्ति पहले अपने सम्प्रदाय का पक्ष लेने लग जाता है और फिर बाद में दुनियादारी के बारे में सोचता है | मौजूदा संघर्ष को धर्म युद्ध नाम देकर कई ओर से हवा देने का प्रयास भी हो रहा है | कौन से नेता क्या कह गए और उनके ऐसा कहने का क्या क्या माने निकाला जाना चाहिए यह तो एक तर्क का ही विषय है , और इस तर्क में उलझते हुए एक तटस्थ बुद्धि रखनेवाला इंसान यह सोचेगा कि छोटे हिंसा के बगल में ही बड़े हिंसा को पनपता हुआ देखा जाना चाहिए |

धर्म का दायरा कभी भी विनाश के अंतिम चरण तक नहीं बढ़ सकता, ही यह व्यक्ति से व्यक्ति को लड़ने के लिए प्रेरित कर सकता | कभी कभी परिस्थितियां ही कुछ ऐसी बन जाती है जब लोग मरने - मारने के लिए जंग भूमि में उतर जाते हैं | कभी हमने यह भी देखा कि काफी समझदारी रखनेवाले सम्राट अशोक  युद्ध लोलुप बनकर कलिंग पर हमला कर दिए थे | न्याय निष्ठ अशोक के लिए यह भी कहा जाता है कि उन्हें अपने माँ के  हत्यारे को दंड देना था | अंततः उनहोंने ही शांति, अहिंसा और धर्म विजय का पथ अपनाया और रचना का कार्य करते रहे | कभी कभी हम यह भी तय नहीं कर पाते कि आखिर उस विषय को कैसे समझें जिसके आधार पर किसी हिंसक क्रिया को जायज ठहराए जाते हों ! यह भी कहाँ तक उचित होगा कि भूमि और धर्म के कारण संघर्ष में कुछ निर्दोष लोगों कि जानें जाती हों और लाखों लोगों को बेघर होते हुए देखा जाता हो ! हमारे पास कोई ठोस आधार रहे या रहे नियति ही कुछ ऐसी है कि धर्म का आधार लेकर कुछ लोग हिंसा, फरेब, धोखा और आतंक का समर्थन करने लग जाते हैं; उन्हें इस बात का शायद ही ज्ञान रहता है कि मौजूदा परिस्थिति में दुनिया एक विकट परिस्थिति से गुजर रही है जहाँ विनाश के बटनों को साथ लेकर घूमनेवालों कि संख्या बढ़ती जा रही है और उन बटनों का सहारा लेकर लोग वाक्य वाण भी चला दिया करते हैं; कभी कभी एक दूसरे के वजूद को मिटा देने कि भी बात करने लग जाते हैं | अगर जंग रुके भी तो क्या हम कभी भी उन लोगों के मन से आतंक के वीभत्स रूप को पूरी तरह हटा सकेंगे ? क्या हिंसा के बड़े स्वरुप को पनपने से कभी रोका जा सकेगा? अगर सभी मुल्कों को यह ज्ञान हो भी गया होगा कि क्षेत्रीय वर्चस्व कायम करने का ज़माना अब नहीं रहा और ही हम मजहबी अलगाव को पनपता हुआ देख सकेंगे तो फिर उस भ्रम से जनता जनार्दन को निकाला भी जाय तो कैसे ?

अंतिम पड़ाव के बारे में सोचकर डरना भी एक महत्व का विषय है ; कम से कम उसका ध्यान रखते हुए भी सनकी नेता शांत होकर निर्माण कार्य में मन लगाया करेंगे और हमें एक रचनाधर्मी समाज को पनपता हुआ देखने का अवसर मिल सकेगा | जंग भले ही कुछ दिनों के लिए चल जाते हों पर इसमें निरंतरता का होना किसी भी हालत में मान्य नहीं किया जा सकेगा |  अक्सर यह देखा जाता है कि जंगभूमि का परिमंडल और किरदारों में बदलाव आते रहता है पर समय समय पर  इसके व्यापकत्व को बदलते हुए देख सकेंगे | प्रत्यक्ष रूप से यह भी महसूस होता होगा कि शायद बड़े  मुल्क आपसी भिड़ंत में दिलचस्पी नहीं लिया करेंगे, पर किसी गट या संगठन के जरिये ही सही उन्हें मैदान में उतरते हुए और अपनी भूमिका बनाते हुए अक्सर देखा जा सकेगा |

विजय श्री का ताज अगर पहनाया भी जाय तो किसे ? क्या किसी गट या संगठन को इसका हकदार माना जाना चाहिए? इसके भी दो विपरीत पैमाने होंगे: एक पक्ष जिसे आतंकी संगठन मान लेगा तो कोई दूसरा पक्ष उसे क्रांतिकारी मानने लग जाएगा और द्वन्द का यह सिलसिला चलता ही रहेगा | कुछ ऐसी ही मान्यता सरदार भगत सिंह के बारे में बनी थी; अंग्रेज भगत सिंह को हत्यारा मानते थे और उसी को ध्यान में रखकर मुक़दमे भी चलाये जा रहे थे जबकि भारत के लोग भगत को एक क्रांतिकारी मान रहे थे और उसे बचाने के लिए लड़ रहे थे | हम कभी भी किसी भी परिस्थिति को दो विपरीत पहलू से देखना मुनासिब नहीं समझते और ही ऐसा करने का हमारा कोई मानस रहता होगा | वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम का ही महत्व था जिसके बल पर श्रीलंका कि बागडोर रावण के भाई को दे दिया गया और मर्यादा पुरुषोत्तम वहां से वापस गए |  भूमिका जो भी बने उसे हमारे विचार और मान्यता का पूरा समर्थन मिलना चाहिए | बाहरी दुनिया और भीतरी व्यक्तित्व के बीच का द्वन्द कभी कभी बहुत घातक सिद्ध हो जाया करता है ; अतः वैयक्तिक भिन्नता का सम्मान करते हुए हमें मानव और मानविक मूल्यों का ही पक्ष लेना होगा कि किसी विनाशक तत्व का |

 

 

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