पहला दान

 


                हम लोग पैदल चलकर रहे हैं | हमने सुना था, अपने इस मुल्क में दुःखी लोग बहुत हैं | वैसे सारे मिंदुस्तान में हर जगह दुःखी लोग हैं, लेकिन आपके इस  मुल्क में   अगर ग़रीब और श्रीमंत, दोनों मिलकर रहेंगे, तो आपके गाँव को कोई दुःख नहीं होगा | हम इस गाँव के सभी लोगों से यही कहना चाहते हैं कि आप एक हो जाइए | गाँव में कुछ लोग दुःखी हैं, तो कुछ लोग सुखी भी हैं | जो लोग सुख में हैं उनसे हम यही कहना चाहेंगे कि गाँव के दुःखी लोगों के बारे  में सोचें | जो दुःखी हैं उन्हें सब्र रखना चाहिएजो हमारे दुःख हैं और जो हमारी तकलीफें हैं उन्हें सज्जनों के सामने रख देना चाहिए | बोलने में ज़रा भी डर नहीं रखना चाहिए और असत्य कभी भी नहीं बोलना चाहिए | अतिशयोक्ति करते हुए जैसा है वैसा ही बोलना चाहिए | आज इस गाँव में हरिजन लोग मुझसे मिलने आए थेउन्होंने कहा कि हमें अगर कुछ ज़मीन मिलती है, तो हम मेहनत करेंगे और मेहनत का खाना खाएँगे | हमने उनसे कहा : अगर हम आपको ज़मीन दिलाएँगे, तो आप सब लोगों को मिलकर काम करना होगा; अलग-अलग ज़मीन नहीं देंगे | उन्होंने कबूल किया कि हम सब एक होंगे और ज़मीन पर मेहनत करेंगे | फिर हमने कहा कि इस तरह हमें लिख दो, आपकी अर्जी हम सरकार में पेश कर देंगे | किंतु उन्हें १०० एकड़ अपने यहाँ की ज़मीन देने के लिए यहीं के एक भाई तैयार हो गये | उन्होंने हमारे सामने हरिजनों को वचन दिया कि आपको इतनी ज़मीन हम दान देंगे |

वह भला मनुष्य आपके सामने है | लेकिन वह अगर ज़मीन देगा तो, हरिजनों पर यह ज़िम्मेदारी आएगी कि सारे -के- सारे प्रेमभाव से एक होकर उसे जोते | अगर ऐसे सज्जन लोग हर गाँव में मिलते हैं , तो ग़रीबी का मसला हल ही समझो | कोई भी श्रीमंत ग़रीबों की मदद के सिवा अपनी भूमि अपने हाथ में रख नहीं सकता | सरकार भी चाहती कि कुछ - - कुछ ज़मीन सब लोगों को मिले |

लेकिन आप लोगों को मैं और एक बात कह देना चाहता हूँ | अगर सब लोगों को ज़मीन दे भी दें, तो भी हम सबका जीवन पूर्ण सुखी नहीं बनेगा | आपके गाँव में कुल तीन हज़ार लोग रहते हैं और गाँव की सारी ज़मीन कुल मिलाकर छह हज़ार एकड़ है | उसमें अच्छी ज़मीन भी आई , खराब ज़मीन भी आए और पत्थर भी आए | मतलब यह हुआ कि हर एक आदमी को इस गाँव में एक-एक एकड़ से ज़्यादा ज़मीन नहीं है | अब आप देखिए कि एक एकड़ ज़मीन की काश्त (खेती का काम) करने से क्या एक साल का खाना कपड़ा आदि सभी चीज़ें मिल जाएँगी ? इसलिए ज़रूरत इस बात की है कि ज़मीन की काश्त के साथ साथ दूसरे धंधे भी गाँव में चलाने चाहिए | स्त्री -पुरुष -बच्चे सबको कपड़े चाहिए | आप कपड़े बाहर से खरीदते हैं | सरकार तो कहती है कि आप अपने गाँव में थोड़ी कपास लगाइए, तो उसपर लगान भी माफ़ कर देंगे | वह ऐसा इसलिए कहती है कि अगर हरएक गाँव में कपास होगी, तो हरएक गाँव के लोग सूत कात सकेंगे और अपना कपड़ा बना संकेंगे , लेकिन आज हमारी यह दरिद्र दशा हुई है कि लोग फटे कपड़े पहनते हैं| हमें दिन--दिन कपड़ा कम मिलनेवाला है |

गाँधीजी ने समझाया है कि हिन्दुस्तान के किसान जैसे अपना अनाज पैदा कर लेते हैं, वैसे ही जब अपने लिए कपड़ा भी पैदा करने लगें, तभी सुखी होंगे, नहीं तो नहीं | इस तरह अगर आप उद्योग करेंगे , तो आपके गाँव के बुनकरों को भी काम मिलेगा | ये बुनकर हमसे आकर कह रहे थे कि "हम महीने में आठ थान  कपड़ा बुन सकते हैं, लेकिन हमें सूत दो ही थान  का मिलता है, तो क्या करें?" भला उन बुनकारों को मैं कहाँ से सूत दे सकता हूँ? हाँ, आप परमेश्वर की प्रार्थना कीजिए कि भगवान ! वर्षा काल में सूत की बारिश करो | तब फिर बुनकरों को बारिश से सूत मिल जाएगा | मानो मृग नक्षत्र में सूत की बारिश होनी चाहिए |

सारांश, मैं कह रहा था कि अगर आप सब लोग गाँव में कपास बोएँ और सूत कताई करें , तो आपके गाँव के बुनकर जिंदा रहेंगे | अरे, मिलवालों के पास सूत है कहाँ? वे लड़ाई के पहले हरेक आदमी के लिए १७ गज कपड़ा बनते  थे, पर अब १२ गज ही दे रहे हैं | आपको अगर विलायत से सूत ला दें, तो क्या आप वह विलायती सूत पसंद करेंगे? जब आपको बाहर से अन्न ला दें, सूत भी ला दें, तो इस देश में रहते ही किसलिए हैं? बाहर ही क्यों नहीं चले जाते? लेकिन अगर आपको इसी जगह रहना है, तो हर गाँव में अन्न पैदा होना चाहिए, हर गाँव में कपड़ा पैदा होना चाहिए | सूत कातना इतना आसान है कि एक पाँच साल का बच्चा भी आसानी से कर सकता है |

एक और बुरी बात है, यहाँ हज़ारों लोग शराब पीया करते हैं | शराब से किसी का भला नहीं हो सकता | अगर यह ताड़ी और सिन्दि (व्यसन) का मसाला जारी रहा तो आपकी अक्ल कुछ काम ना देगी | निश्चित समझ ले कि आप पर किसी किसी दूसरे का राज रहेगा , अपना खुद का राज्य रहेगा | व्यसन हिंदू, मुसलमान और अन्य सभी धर्मों के विरुद्ध है |

पोचमपल्ली, जिला नलगुंडा (तेलंगाना )

१८--१९५१


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